✔ *श्री वृंदावन दर्शन कैसे करें* ✔
▶ प्राय जितने भी वैष्णव जन हैं, वह वर्ष में एक, दो, चार, दस बार वृंदावन आते ही हैं ।
▶ वृंदावन आने की भी शास्त्रीय रीति है कि बहुत अधिक भीड़ अपने साथ नहीं लानी चाहिए, नहीं तो उस भीड़ में शामिल लोगों की देखरेख में ही वृत्ति लगी रहती है, एकाग्रता नहीं बन पाती ।
▶ अतः कोशिश करें कम लोग या छोटे ग्रुप में ही वृंदावन आएं ।
▶ हर बार जब आप आएं तो एक या दो नए मंदिर, नए संत, नये वैष्णव से अवश्य मिले ।
▶ आना, बिहारी जी के, श्री राधा रमण जी, इस्कॉन के दर्शन करना लस्सी पीना, टिक्की खाना, हर बार यही करते-करते वैसा ही है जैसे अनेक साल से कक्षा तीन में ही पड़े रहना ।
▶ यह भी बहुत अच्छा है लेकिन और आगे भी बढ़ना चाहिए । वृंदावन आने पर , यदि आप दीक्षित हैं तो अपने गुरुदेव के स्थान पर अवश्य जाकर प्रणाम करना चाहिए । गुरुदेव विराजमान हैं तो भी, नहीं है तो भी, बाहर गए हैं तो भी ।
▶ आप जिस संप्रदाय से दीक्षित हैं उस संप्रदाय के अपने मुख्य देवालय के दर्शन अवश्य करने चाहिए ।
▶ राधावल्लभ संप्रदायी को राधा वल्लभ जी के
▶ निंबार्क संप्रदायी को बिहारी जी के
▶ गौड़ीय संप्रदायी को गौड़ीय संप्रदाय के
▶ सप्त देवालयों के दर्शन अवश्य करने चाहिए ।
▶ निंबार्क संप्रदायी को बिहारी जी के
▶ गौड़ीय संप्रदायी को गौड़ीय संप्रदाय के
▶ सप्त देवालयों के दर्शन अवश्य करने चाहिए ।
▶ श्रृंगार वट
▶ सप्त देवालयों के साथ-साथ श्री नित्यानंद प्रभु का स्थान श्रृंगार वट के भी दर्शन अवश्य करनी चाहिए । रासलीला में यहीं श्री राधारानी का श्रृंगार किया है श्रीकृष्ण ने ।
▶ चीर घाट पर वृन्दाबन की परिक्रमा करते समय सीधे हाथ पर विशाल जीर्ण। शीर्ण सा प्राचीन स्थान है श्रृंगार वट ।
▶ गौड़ीय संप्रदाय के सप्त देवालय इस प्रकार हैं एक ही बार में यदि सभी दर्शन करने का अवसर न मिले तो, दो इस बार, दो अगली बार, दो अगली बार इस प्रकार से सातों देवालयों के दर्शन अवश्य ही करनी चाहिए । वह सप्त देवालय हैं
▶ श्री गोविंद देव जी
▶ श्री गोपीनाथ जी
▶ श्री मदन मोहन जी
▶ श्री राधारमण जी
▶ श्री गोकुल आनंद जी
▶ श्री राधा दामोदर जी
▶ श्री राधा श्यामसुंदर जी
▶ श्री गोपीनाथ जी
▶ श्री मदन मोहन जी
▶ श्री राधारमण जी
▶ श्री गोकुल आनंद जी
▶ श्री राधा दामोदर जी
▶ श्री राधा श्यामसुंदर जी
▶ और इन सबसे आवश्यक श्रीनित्यानंद प्रभु का स्थान श्री राधारानी श्रृंगार स्थली श्री श्रृंगार वट ।
▶ धाम में आकर यथासंभव संतो के दर्शन और उनकी स्वविवेक से ऐसी सेवा भी करनी चाहिए जिससे उनकी भजन में वृद्धि हो । बाधा ना हो ।
▶ मंदिरों म भी उन मन्दिरों की सेवा करनी चाहिए जहाँ आवश्यकता है । जहाँ प्रचुर मात्रा म धन है । हम लोग अधिकतर वहीँ देते हैं ।
▶ यदि अनुकूलता हो तो भजन के संक्षिप्त प्रश्न भी पूछने चाहिए । वैष्णव कृपा, नाम कृपा से भक्ति में वृद्धि होती है और भक्ति में वृद्धि होते होते अंततः मानव जीवन का लक्ष्य श्रीकृष्ण चरण सेवा प्राप्त होती है । श्री कृष्ण चरण सेवा ही मानव का परम चरम लक्ष्य है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥
🐚 ॥ जय निताई ॥
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